बिहार का इतिहास | History of Bihar

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भारत के हृदय में स्थित, बिहार का इतिहास |History of Bihar प्राचीन सभ्यताओं, वंशवादी विरासतों और सांस्कृतिक समृद्धि के धागों से बुना हुआ एक टेपेस्ट्री है। मौर्य साम्राज्य की भव्यता से लेकर नालंदा विश्वविद्यालय के गहन ज्ञान तक, बिहार का अतीत ऐसी कहानियों का खजाना है जो खोजे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

इस आकर्षक साहसिक कार्य में हमारे साथ शामिल हों क्योंकि हम बिहार के अतीत की परतों को उजागर करते हैं, उन उल्लेखनीय घटनाओं और लोगों की खोज करते हैं जिन्होंने इस जीवंत क्षेत्र की विरासत पर एक स्थायी छाप छोड़ी है।

History of Bihar

चाहे आप इतिहास में रुचि रखते हों या बिहार की जड़ों के बारे में जानने में उत्सुक हों, यह लेख इसके इतिहास के दिलचस्प अध्यायों के माध्यम से आपका मार्गदर्शन करेगा। तो, आइए एक साथ इस रोमांचक यात्रा पर निकलें, क्योंकि हम उन रहस्यों और कहानियों का खुलासा करते हैं जिन्होंने बिहार के इतिहास |History of Bihar को आकार दिया है।

बिहार की स्थिति | Location of Bihar

बिहार पूर्वी भारत का एक राज्य है जिसका इतिहास समृद्ध और विविध है। यह अक्षांश 24°20’10″N और 27°31’15″N और देशांतर 83°19’50″E और 88°17’40″E के बीच स्थित है। यह पश्चिम में उत्तर प्रदेश, उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल और दक्षिण में झारखंड से घिरा हुआ है।

यह जनसंख्या के हिसाब से तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, क्षेत्रफल के हिसाब से 12वां सबसे बड़ा और 2021 में सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से 14वां सबसे बड़ा राज्य है। गंगा नदी बिहार को दो क्षेत्रों में विभाजित करती है: उत्तरी बिहार का मैदान और दक्षिण बिहार का मैदान। राज्य में कई नदियाँ हैं जो हिमालय से निकलती हैं और गंगा में गिरती हैं, जैसे घाघरा, गंडक, बागमती, कोसी और महानंदा।

बिहार अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी जाना जाता है, क्योंकि यह बौद्ध धर्म और जैन धर्म का जन्मस्थान और कई प्राचीन साम्राज्यों और मठों का स्थल था।

प्राचीन काल की संस्कृति और सभ्यता | Ancient culture and civilization

बिहार की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता, पूर्वी भारत का एक क्षेत्र, इतिहास, धर्म, दर्शन और कला के धागों से बुनी गई एक टेपेस्ट्री है। इस समृद्ध विरासत के बारे में कुछ विवरण इस प्रकार हैं:

वैदिक काल: बिहार का उल्लेख ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन वैदिक ग्रंथों में मिलता है। इस अवधि के दौरान, इस क्षेत्र में विभिन्न जनजातियों और कुलों का निवास था। वेद, जो हिंदू धर्म की नींव हैं, इसी क्षेत्र में लिखे गए थे।

मौर्य साम्राज्य: चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य राजवंश, प्राचीन भारत के सबसे प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) इसकी राजधानी थी। सम्राट अशोक के शासन के तहत, मौर्य साम्राज्य पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला, बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और पत्थर के खंभों और चट्टानों पर अपने शिलालेखों का प्रचार किया।

बौद्ध विरासत: बिहार सिद्धार्थ गौतम के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक बुद्ध बने। बोधगया, बिहार में स्थित है, जहाँ बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। राजगीर शहर एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र था, और नालंदा और विक्रमशिला प्रसिद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय थे। [विस्तार से पढ़े]

जैन विरासत: जैन धर्म की जड़ें भी बिहार में गहरी हैं। यह राज्य जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म से जुड़ा है। बिहार में पारसनाथ पहाड़ियाँ सबसे पवित्र जैन तीर्थ स्थलों में से एक है।

गुप्त राजवंश: गुप्त साम्राज्य, जिसे अक्सर “भारत का स्वर्ण युग” कहा जाता है, बिहार के कुछ हिस्सों सहित उत्तरी भारत में फला-फूला। इस अवधि में कालिदास जैसे विद्वानों के योगदान से कला, विज्ञान और साहित्य में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई।

नालन्दा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय: नालन्दा और विक्रमशिला विश्व के दो सबसे पुराने आवासीय विश्वविद्यालय थे। 5वीं शताब्दी ईस्वी में स्थापित नालंदा ने पूरे एशिया से छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। ये संस्थान बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और तर्कशास्त्र सहित विभिन्न विषयों की शिक्षा के केंद्र थे।

कला और वास्तुकला: बिहार कला और वास्तुकला की एक समृद्ध परंपरा का दावा करता है। यह क्षेत्र अपने प्राचीन मंदिरों, स्तूपों और मठों के लिए जाना जाता है, जो अक्सर जटिल नक्काशी से सजाए जाते हैं। बिहार की मधुबनी पेंटिंग और मिथिला कला अपने जीवंत रंगों और विस्तृत डिजाइनों के लिए जानी जाती है।

भाषा और साहित्य: बिहार प्राचीन काल से ही साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। मैथिली और मगही भाषाओं ने महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का निर्माण किया है। कवि विद्यापति मैथिली साहित्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

सांस्कृतिक त्यौहार: बिहार विभिन्न सांस्कृतिक त्यौहारों और मेलों का घर है। सूर्य देव को समर्पित छठ पूजा, बड़े उत्साह के साथ मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसमें नदी तट पर भक्तों द्वारा किए जाने वाले कठोर अनुष्ठान शामिल हैं।

व्यंजन: बिहारी व्यंजन अपने विविध और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए जाना जाता है। लोकप्रिय वस्तुओं में लिट्टी चोखा, सत्तू, और विभिन्न मिठाइयाँ जैसे छेना आधारित मिठाइयाँ और सिलाओ का प्रसिद्ध “खाजा” शामिल हैं।

ऐतिहासिक स्थल: बिहार ऐतिहासिक स्थलों से भरा पड़ा है जैसे कि पटना साहिब (गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान), सासाराम में शेर शाह सूरी का मकबरा और प्राचीन शहर वैशाली, जिसे दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है।

बिहार की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता ने भारत के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है। क्षेत्र की धार्मिक विविधता, विद्वतापूर्ण खोज और कलात्मक उपलब्धियों का जश्न मनाया और संरक्षित किया जा रहा है, जिससे बिहार सांस्कृतिक विरासत का खजाना बन गया है।

प्रागैतिहासिक काल | Prehistoric history of Bihar

बिहार सदियों तक प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास का ‘गर्भगृह’ रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार प्राचीन भारत का एक समृद्ध एवं वैभवशाली क्षेत्र रहा है। प्रागैतिहासिक काल से ही यह मानव सभ्यता एवं संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था जिसका देश के इतिहास और सांस्कृतिक जीवन में निर्णायक भूमिका रही है।

बिहार का वर्णन हमारे दो महान ग्रंथों रामायण एवं महाभारत में किया गया है। एक और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने बक्सर के निकट गुरुकुल में ऋषि विश्वामित्र से शिक्षा ग्रहण की थी तो दूसरी ओर बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को बिहार की इस ऐतिहासिक भूमि में ही ज्ञान प्राप्त हुआ था।

प्राचीन बिहार की जानकारी के लिए पुरातात्विक साक्ष्य साहित्यिक साक्ष्य यात्रा वृतान्त व अन्य स्रोत उपलब्ध है। प्राचीन शिलालेख, सिक्के, दानपत्र, ताम्र पत्र, राजकाज सम्बन्धी खाते-बहियों, दस्तावेज, विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतान्त, स्मारक इमारतें आदि विशेष महत्वपूर्ण स्रोत हैं। प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोतों में साहित्यिक स्रोत अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो आठवीं सदी ई. पू. में रचित शतपथ ब्राह्मण, परवर्ती काल के विभिन्न पुराणों, अंगुत्तरनिकाय, दीघनिकाय के साथ ही बौद्ध रचनाओं में विनयपिटक, जैन रचनाओं में भगवती सूत्र आदि ग्रंथों से प्राप्त होते हैं। काल खण्ड के

अनुसार बिहार के इतिहास |History of Bihar को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) पूर्व प्रस्तर युग (2) मध्यवर्ती प्रस्तर युग (3) नव-प्रस्तर

(4) ताम्र प्रस्तर युग (5) वैदिक काल युग (6) महाजनपद काल

(1) पूर्व प्रस्तर युग (1,00,000 ई.पू.): आरम्भिक प्रस्तर युग के अवशेष फाल, कुल्हाड़ी, चाकू, खुरपी, रजरप्पा (हजारीबाग) एवं संजय घाटी (सिंहभूम) में मिले हैं। ये साक्ष्य जेठियन (गया), मुंगेर और नालन्दा जिले से भी उत्खनन के क्रम में प्राप्त हुए हैं।

(2) मध्यवर्ती प्रस्तर युग (1,00,000 ई.पू. से 40,000 ई.पू.): इसके अवशेष बिहार में मुख्यतः मुंगेर जिले से प्राप्त हुए हैं। इसमें साक्ष्य के रूप में छोटे टुकड़ों से बनी वस्तुएँ तथा तेज धार और नोंक वाले औजार प्राप्त हुए हैं।

(3) नव-प्रस्तर युग (2,500 ई.पू. से 1,500 ई.पू.): इस काल के ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पत्थर के बने सूक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं। हड्डियों के बने सामान भी प्राप्त हुए हैं। इस काल के अवशेष उत्तर बिहार में चिरांद ( सारण जिला) और चेचर (वैशाली) से प्राप्त हुए हैं।

(4) ताम्र प्रस्तर युग (1,000 ई.पू. से 900 ई.पू.):

इस काल में पाये गये काले और लाल मृद्मांड सामान्य तौर पर हड़प्पा सभ्यता की विशेषता माने जाते हैं।

बिहार में इस युग के अवशेष चिरांद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर, खराडीह (बोध गया), घोड़ा कटोरा (राजगीर), समस्तीपुर, सासाराम, भागलपुर आदि से पाये गये है। चिराद तथा बक्सर से पूर्व उत्तरी काले चमकीले मृद्भांड के प्रमाण मिले हैं। इस युग में बिहार सांस्कृतिक रूप से विकसित हुआ तथा मानव ने गुफाओं से बाहर आकर कृषि कार्य की की तथा पशुओं को पालतू बनाया।

(5) वैदिक काल युग:

भारत में आर्यों ने सर्वप्रथम ‘सप्त सैंधव’ प्रदेश में बसना प्रारम्भ किया। इस क्षेत्र में बहने वाली सात नदियों का उल्लेख हमें ऋग्वेद में मिलता है। ये सप्त सैंधव हैं-सिंधु, सरस्वती, सतलज, व्यास, रावी, झेलम और चेनाव

पुराणों के अनुसार मगध का राजवंश वृहद्रथ वंश से प्रारंभ होता है। ‘ऋग्वेद’ में मगध क्षेत्र को कीकट एवं इस क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों को व्रात्य कहा गया है जो संभवतः वे प्राकृत भाषा बोलते थे। बिहार में वैदिक संस्कृति का प्रसार मुख्यतः उत्तर वैदिक काल में ही। हुआ। इसी काल में बिहार में आयकरण का प्रारम्भ हुआ।

ॐ भूर्भुव: स्व: (गायत्री मंत्र )ऋग्वेद
सत्यमेव जयतेमुण्डकोपनिषद्
वसुधैव कुटुम्बकममहोपनिषद्
मातृदेवो भवतैतिरीय उपनिषद्
तमसो मा ज्योतिर्गमयवृहदारण्यक उपनिषद्
अतिथिदेवो भव:तैतिरीय उपनिषद्
सर्वेभवन्तु सुखिनःवृहदारण्यक उपनिषद्
वेद / उपनिषद् से लिए गए आदर्श वाक्य

वाराहपुराण में कीकट को एक अपवित्र प्रदेश कहा गया है, जबकि वायुपुराण, पद्मपुराण में गया, राजगीर. पुनपुन आदि को पवित्र स्थानों में रखा गया है।

वायुपुराण में गया क्षेत्र को असुरों का राज कहा गया है। बिहार के संदर्भ में प्रथम जानकारी शतपथ ब्राह्मण में मिलती है। आयों के विदेह क्षेत्र में बसने की चर्चा शतपथ ब्राह्मण में की गई है। इसमें विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहूगण के साथ अग्नि (वैश्वानर) का पीछा करते हुए सदानीरा नदी (आधुनिक गंडक) तक पहुँचने का वर्णन है।

वैदिक कालीन नादियाँ

यजुर्वेद में सबसे पहले ‘विदेह राज्य’ का उल्लेख मिलता है। वाल्मीकि रामायण में मलद और करुणा शब्द का उल्लेख बक्सर के लिए किया गया है जहाँ ताड़का राक्षसी का वध हुआ था।

बिहार और वैदिक संहिता (साहित्य)

विश्व के सबसे प्राचीन माने जाने वाली कृति वेद सहिता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद तथा सामवेद में बिहार का उल्लेख मिलता है। वेदों की संहिता से रचित ब्राह्मण ग्रन्थ (ऐतरेय, शतपथ, तैत्तरीय आदि) हैं जिसमें बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

पुराण: पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उसके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। अठारह में से अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी-चौथी हरियाणा-पंजाब का क्षेत्र ब्रह्मावर्त शताब्दी (गुप्तकाल) में हुई।

हरियाणा-पंजाब का क्षेत्रब्रह्मावर्त
गंगा-यमुना दोआब क्षेत्रब्रह्मर्षि
हिमालय एवं विध्य क्षेत्रमध्य देश
बिहार-बंगाल क्षेत्रआर्यावर्त
आर्यों द्वार क्षेत्र का नामकरण

अठारह पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्राह्मण पुराण बिहार के ऐतिहासिक स्रोत के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन पुराणों से शुंगवंशीय शासक पुष्यमित्र का वर्णन मिलता है जिसने 36 वर्षों तक शासन किया। इन पुराणों से उत्तर युगीन मौर्यकालीन शासकों के शासन की भी जानकारी प्राप्त होती है।

महाभाष्य : मौर्य युगीन साम्राज्य की समाप्ति के बाद शुंग वंश का प्रतापी राजा पुष्यमित्र हुआ, जिसके पुरोहित पतंजलि थे। पतंजलि ने उनकी वीरता, कार्यकुशलता तथा यवनों पर आक्रमण की चर्चा अपनी महाभाष्य में की है।

मालविकाग्निमित्रम् : यह कालिदास द्वारा रचित नाटक है जिसमें शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेख मिलता है। कालिदास यवन आक्रमण की चर्चा करते हैं जिसमें पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने सिन्ध पर आक्रमण कर यवन को पराजित किया था।

थेरावली : इसकी रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने की थी। इसमें उज्जयिनी के शासकों की वंशावली है तथा पुष्यमित्र शुंग के बारे में उल्लेख किया गया है कि उसने 36 वर्षों तक शासन किया था।

दिव्यावदान : इसमें अनेक राजाओं की कथाएँ हैं। इस बौद्धिक ग्रन्थ में वृहद्रथ को मौर्य वंश का अन्तिम शासक कहा गया है।

पाणिनी की अष्टाध्यायी: यह पाँचवीं सदी पूर्व संस्कृत व्याकरण का अपूर्व ग्रन्थ है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र : यह ग्रन्थ मौर्यकालीन इतिहास और राजनीति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।

मनुस्मृति ग्रन्थ : मनुस्मृति सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ माना गया है, जिसकी रचना शुंग काल में हुई थी। यह ग्रन्थ शुंगकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध कराता है। मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार भारुचि, मेघातिथि गोविन्दराज तथा कुल्लूक भट्ट हैं। यह टीकाकरण हिन्दू समाज के विविध पक्षों के विषय में जानकारी प्रदान करता है।

(6) महाजनपद काल :

बुद्ध के जन्म से पूर्व लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में भारतवर्ष 16 महाजनपदों में बंटा था.. जिसका उल्लेख हमें बौद्ध ग्रंथ के ‘अंगुत्तरनिकाय’ में मिलता है। भारत के सोलह महाजनपदों में से तीन अंग, मगध और वज्जि बिहार में थे।

बुद्ध काल में गंगा घाटी में लगभग 10 गणराज्य थे। इनमें अलकप्प के बुलि, वैशाली के लिच्छिवि और मिथिला के विदेह बिहार के अंतर्गत आते थे।

अंग : अंग राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। भागलपुर के समीप स्थित इस स्थान को ह्वेनसांग चेनन्यों कहता था। अंग राज में कुल 25 राजा हुए जिनमें पहला आर्य राजा तितुक्षी था।

अंग जनपद की राजधानी चम्पापुरी में आधुनिक बिहार के भागलपुर एवं मुंगेर शामिल थे। महाभारत में चर्चित कुती पुत्र कर्ण यहाँ का अंतिम आर्य राजा था। महाभारत युद्ध के पश्चात अंग एवं मगध राज्य के बीच लगातार संघर्ष होता रहा। इस दौरान इस राज्य के अंतिम तीन राजा क्रमशः दधिवाहन, दूधवर्मन तथा ब्रह्मदत्त थे।

दधिवाहन की पुत्री चंदना जैन धर्म (महावीर से प्रेरित होकर) को स्वीकार करने वाली प्रथम महिला थी। मगध के राजा बिम्बिसार ने अंग राज्य के अंतिम राजा ब्रह्मदत्त के समय इस राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया।

वज्जि संघ :

बुद्ध कालीन 10 प्रमुख गणराज्यों में वज्जि संघ एक प्रतिष्ठित गणराज्य था। वर्तमान तिरहुत प्रमंडल में वैशाली और मुजफ्फरपुर तक फैली गंगा नदी के उत्तर में स्थित लिच्छिवियों का गणराज्य था जो आठ कुलों का एक संघ था जिसमें विदेह, ज्ञातृक, च्छिवी, कात्रिक एवं वज्जि महत्वपूर्ण थे। वज्जि संघ की राजधानी वैशाली थी।

वज्जि संघ का लिच्छिवि गणराज्य इतिहास में ज्ञात प्रथम गणतंत्र राज्य था। वज्जि संघ का सबसे प्रबल सदस्य लिच्छवि राज्य के थे जिसके शासक क्षत्रिय थे।

कौटिल्य ने लिच्छवि राज्य का उल्लेख राजशब्दोपजीवी संघ के रूप में किया है। इसमें शातृक या ज्ञातृक एक अन्य सदस्य था. जिसका प्रमुख सिद्धार्थ था। ज्ञातृकों के प्रमुख स्थान कुंडग्राम (वैशाली) में सिद्धार्थ के पुत्र महावीर का जन्म 540 ई. पू. में हुआ। महावीर की माता त्रिशला लिच्छवि राज्य के प्रमुख चेटक की बहन थी।

वज्जि संघ का संविधान एवं प्रशासन संघात्मक कुलीनतंत्र की तरह था। राजाओं की सभा संस्था कहलाती थी। संस्था में सभी राजाओं के अधिकार समान थे, लेकिन बुजुगों को अधिक सम्मान प्राप्त था। संघ के अंतर्गत ‘वैशाली की नगरवधू’ के पद पर प्रसिद्ध नर्तकी आम्रपाली की नियुक्ति की गई थी जिसका संबंध मगध नरेश बिम्बिसार के साथ था।

वैशाली के लिच्छवि गणराज्य:

बिहार में स्थित प्राचीन गणराज्यों में बुद्धकालीन समय में लिच्छवि गणराज्य सबसे बड़ा तथा शक्तिशाली राज्य था। दुनिया का पहला गणराज्य वैशाली में लिच्छवियों के द्वारा स्थापित किया गया।

इस गणराज्य की स्थापना सूर्यवंशीय राजा इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल ने की थी, जो कालान्तर में ‘वैशाली’ के नाम से विख्यात हुआ। लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निर्वाण हेतु महावन में प्रसिद्ध कतागारशाला का निर्माण करवाया था। वज्जि संघ के प्रधान राजा चेटक की पुत्री चेलना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार से हुआ था l

ईसा पूर्व 7वीं सदी में वैशाली के लिच्छिवि राज्य राजतन्त्र से गणतन्त्र में परिवर्तित हो गया। वैशाली राजवंश का प्रथम शासक नमनेदिष्ट था, जबकि अन्तिम राजा सुति या प्रमाति था। इस राजवंश में कुल 24 राजा हुए।

आम्रपाली – यह वैशाली/ लिच्छिवी की राजनृत्यांगना एवं परम रूपवती काम कला प्रवीण गणिका थी। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण एवं सम्मानित माना जाता था। आम्रपाली / अम्बपाली के सौन्दर्य पर मोहित होकर बिम्बिसार ने इसे लिच्छिवि से जीतकर राजगृह में ले आया।

इसके बाद आम्रपाली को महात्मा बुद्ध ने अपने संघ में भिक्षुणी के रूप में प्रवेश दिया और उसे आर्या अम्बा कहकर संबोधित किया। अम्रपाली बौद्ध संघ में प्रवेश करने वाली दूसरी महिला थी। इसके पहले बौद्ध संघ में प्रवेश करने वाली प्रथम महिला बुद्ध की सौतेली माता/मौसी प्रजापति गौतमी थी।

जीवक- मगध नरेश बिम्बिसार का प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक बुद्ध का अनुयायी था। इसकी माता का नाम सलावती था जो राजगृह की गणिका थी। ऐसा माना जाता है कि उसके जन्म के बाद सलावती ने उसे घूरे (कूड़ा) पर फेंक दिया था, जिसे बिम्बिसार का पुत्र राजकुमार अभय ने उठाकर घर ले आया। उसका लालन-पालन के बाद बिम्बिसार ने जीवक को तक्षशिला (कश्मीर) में शिक्षा हेतु भेज दिया. जहां उसने आयुर्वेद पर विशद् अध्ययन किया।

बाद में यही जीवक एक प्रख्यात चिकित्सक एवं राजवैद्य बना और राजगृह के निकट अबवन (आम्रोद्यान) में अपना चिकित्सालय खोला जहां महात्मा बुद्ध से उसकी मुलाकात। हुई और उनका अनुयायी बन गया। चिकित्सकीय प्रवीणता के कारण ही बिम्बिसार ने जीवक को अवन्ति के रोगग्रस्त राजा प्रद्योत की चिकित्सा के लिए भेजा था।

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