जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat Katha 2023| जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, धार्मिक महत्व

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Table of Contents

परिचय

१.१ जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat क्या है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो मुख्यतः महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत माँ जीवित्या की पूजा के रूप में जाना जाता है और इसका महत्वपूर्ण स्थान वाहिनीपुर स्थित महाराष्ट्र के देवस्थान में है। यह व्रत फलाहारी (व्रत में फल और पत्ते का सेवन) के रूप में मनाया जाता है और महिलाओं के समर्पित होता है। जितिया व्रत इस साल 5 अक्टूबर से शुरू होगा या 7 अक्टूबर तक चलेगा। 5 अक्टूबर को नहाए खाए से ईश व्रत की शुरुआत होगी और 6 अक्टूबर को महिलाएँ निर्जला व्रत रखेंगी और 7 अक्टूबर को ईश व्रत का पारण होगा।

Jitiya vrat

१.२ व्रत का आरंभ और समय

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat साधारणतः आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अठवां तिथि को शुरू किया जाता है। यह व्रत तीसरी दिन सुबह से शुरू होता है और बीसवें दिन सुबह को समाप्त होता है। यह नौ दिनों तक चलता है और महिलाओं को अपनी स्वयंपूर्ण प्रथा के अनुसार व्रत करना होता है।

१.३ जीवित्या में व्रत करने की महिलाओं की विशेष भूमिका

जीवित्या व्रत महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसे माँ जीवित्या की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत महिलाओं को सामाजिक रूप से मजबूत बनाता है और उन्हें सम्मान की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। महिलाओं को इस व्रत में भाग लेने के लिए सम्पूर्ण आध्यात्मिक और आधिकारिक अनुमति मिलती है।

२. कथा की शुरुआत

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat, एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो भारतीय मात्रका महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इसे संतान की लंबी उम्र और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। यह व्रत यात्रा मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी और नवमी को मनाया जाता है। जीवित्या व्रत कथा का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह बताती है कि इस व्रत को क्यों और कैसे मनाया जाता है।

२.१ महर्षि मङ्गल और उनकी पत्नी शंतिनी

कहानी की शुरुआत महर्षि मङ्गल और उनकी पत्नी शंतिनी से होती है। मङ्गल और शंतिनी बहुत संतुष्ट और सम्पन्न जीवन जी रहे थे, हालांकि, उन्हें एक छोटे से सुखद घरेलू अस्तित्व की कमी थी। वे दोनों फल देने वाले व्रतों और धर्मिक अभ्यासों को अपनाने के लिए जाने जाते थे। एक दिन, उन्हें अपने संतान की इच्छा की सूचना मिली और वे अत्यंत खुश हुए।

२.२ पुत्रोत्पत्ति का इंतजार

शंतिनी बार-बार गर्भधारण करने की कोशिश करती रही, लेकिन उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो सकी। इसके बावजूद, मङ्गल और शंतिनी अपनी आशा खो नहीं रहे थे और पूर्व व्रतों और ध्यान के साथ देवी दुर्गा की आराधना जारी रखते थे। उनके मन में संतान की प्राप्ति की आकांक्षा थी और वे इसमें संकोच नहीं कर रहे थे।

२.२.१ ब्रह्मर्षि देवशर्मा की आग्नेयी तपस्या

इस बीच, एक ब्रह्मर्षि जिनका नाम देवशर्मा था, शंतिनी और मङ्गल के समीप ही वन में तपस्या कर रहे थे। देवशर्मा ने अपने शक्तिशाली तप के द्वारा इच्छित संतान की प्राप्ति के लिए चर्चा की। उन्होंने शंतिनी को उसके पवित्र व्रत का वर्णन किया, जिसे “जीवित्या व्रत” कहा जाता है। यह व्रत देवी दुर्गा की कृपा को प्राप्त करने के लिए किया जाता है और वह उपासित और ध्यानी हुई माता की कृपा से अपनी संतान की सुरक्षा प्राप्त करने में सहायता करेगी। देवशर्मा ने शंतिनी को व्रत करने की सलाह दी और मङ्गल के साथ उसे इसका पालन करने के लिए प्रेरित किया।

३. भारती की विवाह

भारती एक सुंदर और सामरिक स्वभाव की धर्मपत्नी थी। उन्होंने अपनी शादी ब्रह्मर्षि देवशर्मा के साथ की थी, जो एक प्रख्यात ऋषि थे। इस वैवाहिक बंधन की कथा महान थी, क्योंकि यह न केवल कार्यक्षेत्र में अद्वितीय था, बल्कि धार्मिक परंपरा में भी महत्वपूर्ण है।

३.१ ब्रह्मर्षि देवशर्मा की आग्नेयी तपस्या का प्रभाव

ब्रह्मर्षि देवशर्मा एक विद्वान्, तपस्वी, और ज्ञानी ऋषि थे। उन्होंने न केवल आत्म साक्षात्कार हासिल किया, बल्कि अपने तप के माध्यम से समाज में आहुति भी दी। विवाह से पहले, भारती को देवशर्मा के इस आग्नेयी तपस्या के प्रभाव से अद्वितीय ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके परिणामस्वरूप, वह अपने जीवन में स्वयं के नए मार्ग का पालन करने को भी प्रेरित हुई।

३.२ भारती के साढ़े आठ सुतन

भारती को आत्मीयता और प्रेम की इस बड़ी वरदान के अलावा, भारती के और देवशर्मा के बीच और एक बड़ी आंतरिक आपसी सम्बन्ध था। यह आंतरिक आपसी सम्बन्ध द्वारा, भारती ने धीरे-धीरे अपना सेल्फ-आउट्रेस्टिक प्रवृत्ति देखी और इसे पुष्टि की। उन्होंने वचन वचान से उन्मत्त होने की जगह, उसके सामाजिक डर को खोने का विचार किया। उन्होंने सुंदर बच्चों की अपेक्षा नहीं, परिवार और अहम्य बातों की चिंता की।

३.३ भारती की सुख-समृद्धि के लिए की गई जीवित्या व्रत की पूजा

एक दिन, भारती को पति के साथ अपना जीवन उद्धार करने की इच्छा हुई, और उन्होंने एक व्रत को लेकर निर्णय लिया। इसलिए, भारती ने जीवित्या व्रत का आयोजन किया गया, जो उनके और उनके परिवार की सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण था। इस त्योहार में, भारती ने आत्मा संयम, मन की शुद्धि और धार्मिक्ता का विशेष महत्व रखते हुए, फलों की मांग की और दी गई पूजा की। यह व्रत उनके जीवन में नया प्रकाश घोषित करता है और उन्हें अपने सुख और समृद्धि के लिए शक्ति प्रदान करता है।

भारती और अग्नजित

भारती और अग्नजित, महाराज धृतराष्ट्र के जीवन के विशेष पहलू हैं। यह एक कथा है जिसमें प्रेम, न्याय और परिवार के महत्व का वर्णन होता है।

लड़की का जन्म और आकर्षक संयोग

भारती, धृतराष्ट्र की पुत्री के रूप में पहली बार साम्राज्य की स्थापना की गई थी। उनका जन्म अपने आप में एक अद्भुत घटना था। उस दिन मन्युश्रीधर ऋषि ने दृष्टि कोसने के द्वारा जगती झलक प्राप्त की थी और भारती की सुंदरता उन्हें आकर्षित कर गई।

“उनका जन्म सिर्फ धृतराष्ट्र के लिए ही नहीं बल्क समस्त राष्ट्र के लिए भी एक बड़ी संकेत है।”

“इस आकर्षक संयोग के बाद, भारती का जीवन उलझनों और परिस्थितियों के ढेर से भर गया।”

भारती की विवाह की कठिनाईयाँ

जब भारती वयोव्रिध्ध इक्ष्वाकु कुल के युवा राजा सुंदर से विवाह करने का निश्चय किया, तो उन्हें अपने पिता और भाइयों की सहमति प्राप्त करने में काफी कठिनाईयाँ हुईं। यह एक परंपरागत संस्कृति थी जहां एक लड़की की सहमति के बिना उसका विवाह नहीं हो सकता था।

” जबरदस्ती के बजाय, भारती को खुद ने अपने स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें सभी महाराजाओं और राजकुमारों को आमंत्रित किया गया था।”

“भारती की बहादुरी और स्वाधीनता का प्रमाण यह था कि वह अपने प्रिय अग्नजित के द्वारा जीते गए प्रतियोगिता को बाहरी बख्शिश नहीं मानी।”

भारती की भक्ति और अग्नजित का प्रेम

जब दूसरे राज्यों के महाराजाओं ने स्वयंवर में भाग लिया, तो अग्नजित ने अत्यंत काठिनाईयों का सामना किया और सभी को परास्त कर उसे जीता। इस जीवनयात्रा के दौरान, भारती ने अपने प्रिय अग्नजित के प्रति अपार प्रेम व्यक्त किया।

“अग्नजित की विनम्रता, वीरता और शीलभंग ने भारती के मन को मोह लिया और उनके बीच एक अटूट संबंध बन गया।”

“भक्ति और प्रेम के विचारों के माध्यम से भारती ने अपने जीवन को धार्मिकता और आदर्शों के साथ प्रभावित किया।”

इस प्रकार, यहां गई कथा में हमें भारती और अग्नजित की कहानी सुनाई गई है जो हमें प्रेम, त्याग, और भक्ति के महत्व को महसूस कराती है। यह कथा हमें इस विशेष पर्व “जीतिया” को मनाने के लिए प्रेरित करती है और हमें संपूर्णता और पूरा जीवन जीने के लिए संकल्पित करती है।

५. दुर्योधन का अभिमान

दुर्योधन, महाभारत में उद्धव और अर्जुन से भी अधिक योग्यता और पांडवों के साथी परिवार से जल सकनेवाले उनकी प्रतिष्ठा का मानकर अपने भाग्य का अभिमान करते थे। उन्हें अपने भाग्य के लिए हमेशा पण्डितों की सलाह लेने की ज़रूरत ही नहीं लगी, इसलिए उन्हें दिनों दिन और अभिमान में उभरते देखने को मिलता था।

५.१ भारती का उदधि चोरी

एक दिन, दुर्योधन की बहन भारती ऐसे घटनाओं में उलझी थी जिससे वे अब तक अनजान थीं। उनके मन में संदेह आया और उन्होंने एक रात को गोदावरी नदी किनारे सीकरित नामक यात्री ऋषि के यहां चांदी की अति महत्वपूर्ण वस्त्र की मांग की। ऋषि ने चांदी का कोई भी वस्त्र नहीं दिया। इसके परिणामस्वरूप भारती ने मन की बात छुपाई और उसके मन को ताड़ते हुए उदधि चोरी करने का ठान लिया।

५.२ दुर्योधन की चाल में फंसी भारती

अगले दिन, भारती ने अपनी माता को कर्णवती गुफा में बंधक बनाया और उदधि वस्त्र निहालने के लिए आगे बढ़ी। उन्होंने अपनी यात्रा में दीर्घ दूर तक अत्यंत कठिनाइयों का सामना किया और शिवपुरी नगरी तक पहुंची, जहां वे उदधि वस्त्र का अवलोकन करने के लिए उत्सहित थीं।

५.३ भारती की छवि पर चिढ़ पंडवों की सेना

अस्तित्वस्थापक महादेव शंकर की कृपा से, भारती आख़िरकार चांदी की वस्त्र को प्राप्त करने में सफल रहीं। हालांकि, पंडव वास्तव में भारती की वेशभूषा को सीकरित के तांत्रिक के द्वारा पहने गए वस्त्र से पहचान लेने में असमर्थ रहे। पंडवों की सेना बाढ़ के कारण मरुदेव पहुंची और वहां आपसी लड़ाई शुरू हो गई। पंडवों ने दुर्योधन के द्वारा पहने गए वस्त्र के पहचान की जतानी के लिए भारती की छवि पर चिढ़ उठाई, जिससे युद्ध में उन्हें बहुत ही बड़ा महानुभाव मिला।

इस प्रकार से, दुर्योधन का अभिमान और उनकी चाल से फंसी भारती की विचित्र व्रत कथा के माध्यम से हमें आवश्यक सबक सिखाती है। यह दिखाती है कि गर्व के अभिमान में धृति रखने वाले व्यक्ति को अपनी ही अहंकार की भयंकर गंगा में डूबना पड़ सकता है। हमें सत्य और ईमानदारी के मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि हमें अपनी योग्यता का सही उपयोग करना और गर्व के बावजूद अपने आप को भूल जाने से बचना सीखें।

६. अग्नजित की करुणा और प्रतिज्ञा

प्रतिष्ठित धार्मिक कथाओं में से जीतिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha एक प्रलेखनीय कथा है जो हमें भारतीय संस्कृति की गहराई और प्राचीनता की ओर ले जाती है। यह व्रत विशेष तौर पर दक्षिण भारत, विशेष रूप से उत्तराखंड और नेपाल में प्रचलित है। यह व्रत सैंट मंगरेर या अग्नजित बाबा की पुत्री भारती के प्रति उनकी सन्निधि, करुणा और प्रेम का प्रतीक है। इस लेख में, हम जीतिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha के तहत अग्नजित की करुणा और प्रतिज्ञा की खासियतों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

६.१ अग्नजित की भारती के प्रति करुणा और स्नेह

अग्नजित बाबा, आर्य समाज के एक महान संत थे। उन्होंने अपने जीवन में न केवल न्याय और सत्य को अपनाया था, बल्कि उनके मन में मानवता और सेवा की भावना भी खूब विकसित थी। अग्नजित बाबा की बेटी, भारती, वे माता पिता के प्रिय संतान थीं। भारती का जन्म भारती की पत्नी से हुआ था, जो कि असामरिक दृष्टि से अशुभ था।

इसे देखकर अग्नजित ने अपनी पत्नी के साथ उपरोक्त व्रत की कथा को कार्यान्वित करने का निश्चय किया। इससे उस वक्त से ही भारती की गहन भक्ति और अग्नजित के प्रति गहरा प्रेम उपजा और उनके बीच एक अद्भुत संबंध बना।

अग्नजित ने हमेशा से अपनी बेटी का ध्यान रखा और उनके जीवन की मदद की। उन्होंने भारती को शिक्षा दी और उन्हें सम्पूर्ण संस्कृति और विद्या का ज्ञान दिया। अग्नजित के संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका में भारती ने उनके व्यक्तित्व के साथ ही, अपनी मानवता और प्रेम को इस दुनिया में फैलाने का अद्वितीय तरीका सीखा।

६.२ अग्नजित का धन और संपत्ति से व्रत की पूजा

अग्नजित बाबा धन और संपत्ति के प्रतीक थे। वे सर्वदा धनवान और सभी के प्रति उदार थे, लेकिन अपने स्वार्थ की परख में कभी नहीं थे। वे जानते थे कि संपत्ति का देवता माता लक्ष्मी होती है और इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष कीजिए जाना चाहिए। इसलिए, वे हमेशा अत्युक्त धनादेश का कर्तव्य निभाते थे और अपनी संपत्ति का उचित दान करके विशेष आदर और पाना रखते थे।

जीतिया व्रत धार्मिक रूप से संपत्ति की पूजा करने का एक अद्वितीय तरीका है। इसका मूल्य मातृत्व का आदर्श, संपत्ति की महत्त्वपूर्णता, और प्रेम के माध्यम से दान करने के अद्वितीय गणित को प्रतिष्ठित करता है। व्रत के दौरान, भक्त अपने माता-पिता और परिवार के साथ एक समृद्ध और सद्भावपूर्ण क्षण साझा करते हैं। यह धार्मिक अवसर हमें यह सिखाता है कि हमेशा संपत्ति का आदर्श इस्तेमाल करते हुए अनुशासनपूर्वक और सावधानीपूर्वक दंडनीय क्रिया करें और अपने प्यार के जरिए दूसरों का मदद करें।

यदि हम जीतिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha की गहराई और प्रतिज्ञा को समझते हैं, तो हम जीवन में प्रगति करने के लिए एक प्रेरणास्रोत तथा सन्मार्ग मिलेगा। अग्नजित के प्रेम और सहानुभूति, उनकी बेटी भारती के मांगलिक जीवन में सदैव बहुमुखी विकास और स्थिरता को प्रगट करेगा। जीतिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha एक प्रकांड प्रेरणा स्रोत है, जो हमें ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करती है कि हमेशा ईश्वर के मार्ग में चलना और मानवीय गुणों का कदम सीधा और सकारात्मक रखना चाहिए।

संक्षेप में कहने के लिए

जीतिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha अन्य पवित्र कथाओं की तुलना में एक अनूठा कथा है। यह कथा अग्नजित बाबा की करुणा, प्रेम, और संपत्ति के प्रति उनकी भारती का इशारा है। इस व्रत के माध्यम से हम धार्मिक कर्तव्य को समझेंगे, मानवीय बनों को विकसित करने के लिए प्रेरित होंगे और ईश्वर के शांतिदायक सन्देश का पालन करने की प्रतिज्ञा करेंगे। इस पवित्र व्रत का पालन करना हमें उच्चतम और श्रेष्ठतम आदर्शों की ओर प्रेरित करता है और हमारे जीवन में सौभाग्य, सम्पत्ति, और खुशहाली लाता है।

७. भारती का क्षमायाचना स्वीकार

श्रीमान्दल में, जीतिया के पवित्र व्रत का पालन करते हुए, भारती नामक एक सती स्त्री जीवन का आदर्श प्रतीक बनती हैं। वह सभी संकटों से पूर्णता के साथ निपटने में समर्थ होने वाली देवी भगवती हैं। भारती द्वारा की जाने वाली कथा माहासागर जैसी है, जिसमें उनकी प्रतिज्ञा, कष्ट और दयाभरी भावना सहित उभरती है।

७.१ भारती की प्रतिज्ञा और दया भरी कथा

भारती, धर्मपत्नी के रूप में, धरती पर न्याय की प्रतीक बनी थीं। प्रकृति के साथ भाग्य न्याय करने का संकल्प लेते हुए, उन्होंने उत्पन्न बालक के कष्ट देखकर सत्ता और सुख को प्राथमिकता दी। बहुत ही श्रद्धा भाव से, भारती ने प्रतिज्ञा की की वह अपने प्यारे पुत्र का अच्छा पालन करेगी और जीवन भर उसे कष्टों से बचाएगी।

विपत्तियों के बावजूद, भारती ने अपने अनियंत्रित मन को पश्चाताप के साथ नियंत्रण में रखा और सती योग की परीक्षा का सामना किया। उनकी प्रेम पूर्ण भावनाएं न केवल उनके परिवार को प्रभावित करती हैं, बल्कि पूरे समुदाय को भी प्रेरित करती हैं। भारती की सादगी, धैर्य और त्याग की कथा भारती व्रत के जरिए हर धर्मपत्नी के मन में आदर्शों की भावना को जगाती है।

७.२ भारती द्वारा विधिवत पूजन

जीतिया व्रत | Jitiya Vrat का आयोजन भारती लक्ष्मी की पुजा के रूप में किया जाता है। उनकी पूजा के लिए विधिवत तरीके से सजाए जाने वाले मंदिरों में चारों ओर उम्मीदवार महिलाएं एकत्रित होती हैं। व्रत की तैयारी में महिलाओं को एक दूसरे की मदद करने, प्रेम और एकता की भावना को निभाने का अवसर मिलता है।

मन्दिर में पूजा के दौरान, देवी भगवती की कथा का पाठ किया जाता है और भक्तों को ध्यान केंद्रित रखने और धार्मिक गीतों का आनंद उठाने का अवसर मिलता है। आरती के निर्मम ताल में गर्भगृह में लक्ष्मी माता की मूर्ति ध्यान करने का अवसर होता है, जिससे भक्तों को मानसिक शांति और धार्मिक आनंद की प्राप्ति होती है।

जीतिया व्रत | Jitiya Vrat के दौरान भक्त महिलाएं ब्राह्मण परिवार की स्त्रियों की ओर से परमात्मा लक्ष्मी की प्रार्थना करती हैं और उनके द्वारा प्रसन्नता प्राप्त करती हैं। इससे भक्त महिलाओं को आत्मविश्वास और मानसिक सशक्तिकरण का अनुभव होता है। जीतिया व्रत में विभिन्न प्रकार के प्राणी पूजन भी किया जाता है, जिससे भूतिक और आध्यात्मिक संतुलन को बढ़ाया जाता है।

इस तरह से, भारती व्रत की कथा | Jitiya Vrat Katha और विधिवत पूजा न केवल प्राचीन धार्मिक परंपरा की प्रतिष्ठा बनाए रखती हैं, बल्कि समाज में एकता और सदभाव को भी समर्पित करती हैं। यह व्रत धार्मिक आदर्शों और एक समृद्ध समाज के विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हमने देखा है की भारती के नाम की प्रतिष्ठा और भक्ति में जीवन और समाज में एकता को कैसे स्थापित किया जा सकता है। जीतिया व्रत का महत्व, पूजा की विधि और भारती की प्रतिज्ञा जीवन में हमेशा सत्य और समर्पण का मार्ग दिखाते हैं। इसलिए, हमें इस पवित्र व्रत | Jitiya Vrat का आचरण करके अपने जीवन को सुखमय और सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

८. महर्षि जैमिनि की आग्नेयी तपस्या

८.१ जैमिनि की जन्म कथा

दुर्गा अष्टमी के दिन, एक बहुत ही प्रसन्नता भरे दिन, देवी धरती पर अवतरित हो गईं। वह अंधक और उसके अत्याचारी राजा अधरसुणा के अत्याचारों का अंत करने के लिए आयीं थीं। असुरों के बर्बरताओं को देखकर, धरती माता ने इंसानियत के प्रतीक आदमी के रूप में दो विपणियों से अवतीर्ण होकर दुर्गा जी ने जन्म लिया। प्रीता व सुमति, ये दो मार्कण्डेय की पत्नियाँ थीं, जो धरती पर आयीं थीं ताकि वे दुर्गा को बचाने में मदद कर सकें।

दुर्गा जी की जन्मकथा में उनके बालरूप की कहानी नहीं है, जिसे हम प्रीता और सुमति द्वारा पाले गए हैं। जन्मकथा में, वह एक मारकण्डेय के रूप में जन्मीं थीं, जो एक ब्रह्मचारी थे और सशक्तिकरण और प्रेम की प्रतीक थे। उन्होंने दुर्गा को आपकी एक बिना शक्ति के रूप में पहचाना और उन्हें साइलैण्डर का अर्थ बताया। उन्होंने बताया कि साइलैण्डर से उकसाए गए प्राचीन सिक्के, धन, सृष्टि, गर्भधारण, और प्रजनन के लिए प्रतीक हैं।

८.२ जैमिनि का अति महत्त्वपूर्ण संकल्प

महर्षि जैमिनि व्रत अकेले ब्रह्मचारी बालकों द्वारा किया जाता है। यह व्रत प्रतिवर्ष सितंबर के पहले अल्पयुग के आठवें दिन शुरू होता है और आठ दिन के बाद ही समाप्त होता है। इस अवधि के दौरान, ब्रह्मचारी बालक अधिकाधिक शक्ति की कमी और सहिष्णुता के द्वारा अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र बनाते हैं। इस व्रत में जैमिनि महर्षि द्वारा निर्मित किए गए संकल्प की विशेष महत्त्वपूर्णता है।

जैमिनि के इस व्रत के संकल्प में ब्रह्मचारी बालक कहते हैं, “मैं अपने दिल, मन और आत्मा को शुद्ध करके साइलैण्डर की तरह पवित्र बनाऊंगा, शक्तिशाली बनाऊंगा। मैं धारण करूंगा कि साइलैण्डर गर्भधारण, सृष्टि और प्रजनन के लिए एक प्रतीक है। मैं आत्मा को अपने मस्तिष्क से और दिल से जोडूंगा ताकि मैं पूर्णतया आत्मनिर्भर बन सकूं। मैं गर्भधारण और सृष्टि के लिए नई शक्तियों को जन्म दूंगा। मैं उच्च शक्ति, स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्राप्त करूंगा।”

  • व्रत संकल्प
    • आऋगनेयं व्रतं करिष्ये।
    • आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए मैं ब्रह्मचर्य में विश्वास रखता हूँ।
    • मैं सम्पूर्ण शक्तिशाली होकर बनता हूँ।
    • मैं आत्मा को शरीर, मन और बुद्धि के माध्यम से प्रकट करूंगा।
    • मैं साइलैण्डर के प्रतीक की तरह पवित्र बनता हूँ।
    • मैं गर्भधारण, सृष्टि और प्रजनन की शक्तियों को जगाऊंगा।
    • मैं उच्च शक्ति, स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्राप्त करता हूँ।

जैमिनि की आग्नेयी तपस्या महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से ब्रह्म ज्ञान, आत्मा ज्ञान, और पवित्रता की प्राप्ति होती है। इस व्रत के द्वारा, भक्त शिव की कृपा प्राप्त करते हैं और मिथ्यादृष्टि, अहंकार, और भौतिक आकर्षण से मुक्त होते हैं। जैमिनि की आग्नेयी तपस्या में, भक्त विभिन्न साधनाओं का उपयोग करके अपने शरीर, मन और आत्मा को पवित्र बनाता है और अपनी अद्भुत शक्तियों को जगाता है।

यह व्रत ब्रह्मचारी बालक के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जो शिक्षा, ध्यान और संस्कृति के द्वारा अपने आप को समृद्ध करते हैं। जैमिनि की आग्नेयी तपस्या, जब तक सही ढंग से की जाए, एक ब्रह्मचारी बालक को उनके संपूर्ण प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा में उन्नति प्राप्त करने में मदद कर सकती है। इस व्रत का सम्पूर्ण पालन, दृष्टिकोण एवं अनुशासन परायण होने को आवश्यकता होती है, ताकि ब्रह्मचारी बालक अपने को मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से संपूर्ण एकजुट हो सके।

जैमिनि की आग्नेयी तपस्या के द्वारा, शिष्ट व्यक्ति अपने आप को वेद, उपनिषद, और पुराणों के ज्ञान के माध्यम से समृद्ध, विचारशील, और प्रगट होता है। यह व्रत सामर्थ्य, संयम, और निष्काम कर्म की शिक्षा को स्थापित करता है। जैमिनि की आग्नेयी तपस्या उसके आग्रह को प्रकट करती है, जो शिष्ट व्यक्ति को सत्य, न्याय, और उच्चतम आदर्शों के प्रतीक बनाता है।

९. परिणय और जीवित्या व्रत की पूजा

९.१ विवाह की समस्याएँ और उनका समाधान

विवाह एक पवित्र बंधन होता है जो दो लोगों को एक साथ बांधता है। यह रिश्ता सुख, समृद्धि और सम्पन्नता के साथ होना चाहिए, लेकिन कभी-कभी विवाहित जीवन में समस्याएँ आ सकती हैं। भाग्यशाली तरीके से, जीवित्या व्रत एक ऐसा परंपरागत उपाय है जो विवाह की समस्याओं को सुलझाने में मदद कर सकता है।

यह व्रत एक माता की स्नेह और मान समर्पण को दिखाता है, जिससे शक्तिशाली बंधन बनता है और समस्याएँ हल होती हैं। जीवित्या व्रत संसार में बहनों के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जहां वे अपने पतियों के लंबे और सुखी जीवन की कामना करती हैं और उनकी खुशियों का लोहे का डिंट वन्दन करती हैं।

९.२ प्रेम और वचनबद्धता की मान्यता

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक पूजनीय उपासना है, जिसमें प्रेम और वचनबद्धता की महत्ता दिखाई जाती है। यह व्रत एक पत्नी के प्रेम और समर्पण को प्रदर्शित करता है और उसे दिखाता है कि उसका पति उसे हर परिस्थिति में समर्थन करेगा। व्रत के दौरान, बहने अपने पतियों को समर्पित होती हैं और सच्चे मन से उनकी खुशियों और अपार प्रेम की कामना करती हैं।

इससे विवाहित जीवन में मधुर और गहरे संबंध बनाए रखने की क्षमता बढ़ती है और प्रेम की मान्यता सुरक्षित रहती है। इस पूजा से पुरुष और स्त्री का तात्पर्य यह दर्शाया जाता है कि उनकी सभी संबंधित प्रेमिका आदि के प्रति सर्वोच्च समर्पण होना चाहिए और वे अपनी प्रेमिकाओं के प्रति निष्ठा रखेंगे।

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के प्रभाव

१०. धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat का पालन करने से धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से कई प्रभाव होते हैं। यह व्रत धर्म संबंधित नैतिकता और आदर्शों को बढ़ावा देता है। इसके माध्यम से लोगों को एक दूसरे के साथ एकता का आभास होता है और वे परिवार में संयमित, सादगी और शांति का माहौल बनाए रखते हैं।

जीवित्या व्रत समृद्धि, शांति और सम्पन्नता की कामना में मदद करता है और समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने में सहायता प्रदान करता है। इसे पालन करने से समाज में आर्थिक वृद्धि होती है और महिलाओं को आत्मविश्वास, प्रेम और सम्मान की वृद्धि होती है।

१०.२ महिलाओं की मनोदशा में परिवर्तन

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat अपने प्रभावशाली अनुभव के लिए महिलाओं के जीवन में एक परिवर्तन लाता है। व्रत के दौरान, महिलाएं अपने पतियों की मान्यता, सम्मान, और संपूर्ण मानसिक और शारीरिक कल्याण का आभास करती हैं। यह उन्हें सामरिक तरीके से मजबूती और आत्मविश्वास प्रदान करता है। व्रत के दौरान, महिलाएं शक्तिशाली बनती हैं और अलग-अलग सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करती हैं।

इस पूजा को करने से महिलाएं स्वतंत्रता का अनुभव करती हैं और अपने आप को सामरिक तथा सुरक्षित महसूस करती हैं। यह व्रत महिलाओं को समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर देता है और उन्हें अधिक समझदार और संवेदनशील बनाता है।

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat, जिसका महत्वपूर्ण स्थान हिंदू संस्कृति में है। जीवित्या व्रत के पालन से विवाहित जीवन में सुख और समृद्धि आती है और प्रेम और समर्पण की महत्वपूर्णता को दर्शाता है। यह व्रत धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव देता है और महिलाओं की मनोदशा में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।

जीवित्या व्रत की पूजा का पालन करने से विवाहित जोड़े सुखी और समृद्ध होते हैं और पूर्णता का अनुभव करते हैं। यह व्रत बहनों की बहुमुखी भावना को प्रकट करता है और समाज में समर्पण और सौहार्द का प्रचार करता है।

११. जीवित्या में व्रत करने के साथ संबंधित नियम और विधिवत पूजन

जीवित्या व्रत मातृपक्ष (पितृ अमावस्या) के दूसरे दिन संपन्न होता है और यह व्रत महिलाओं द्वारा बड़ी बधाई और आत्मकथा द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत मातृपक्ष में अपनी माताओं की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना करती है। इसमें कुछ नियम और विधियां होती हैं जिन्हें पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है।

११.१ जीवित्या में दान और सेवा

जीवित्या में दान करना और सेवा करना इस व्रत का महत्वपूर्ण अंग है। संस्कृत शब्द “जीवित्या” दान करने का ही अर्थ होता है। इस व्रत में घर में या मंदिर में भोजन कराना बहुत उपयोगी माना जाता है तथा त्याग का भी महत्व है। व्रत के दिन सिर्फ पूजा करने के बजाय किसी गरीब व्यक्ति को भोजन देकर उनकी मदद करना चाहिए। यह व्रत माताओं के उपकार और समृद्धि की प्राप्ति की कथा को याद दिलाता है।

११.२ जीवित्या व्रत के लिए आवश्यक सामग्री

जीवित्या व्रत के लिए कुछ आवश्यक सामग्री की आवश्यकता होती है। इसमें धूप, दीप, अगरबत्ती, सिंदूर, रोली, अक्षत, फूल, पुष्पमाला, पान, सुपारी, उपहार, यज्ञोपवीत, पंचामृत जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसके अलावा, यजमान व्रत के लिए उपयुक्त भोजन और पानी की तैयारी करते हैं।

१२. जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के महत्वपूर्ण संकेत

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat आने वाले समय में बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसका पालन करने से माता-पिता की दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन की कामना होती है। यह व्रत धार्मिक ग्रंथों में भी महत्त्वपूर्ण रूप से उल्लेखित है।

१२.१ धर्मग्रंथों में जीवित्या व्रत की महत्त्वता

हिंदू धर्म में, जीवित्या व्रत को मातृपक्ष (पितृ अमावस्या) का एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। इस दिन मातृपक्ष में संपण्न होने वाली पूजा और दानों से मातृ देवी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इसके अलावा यह व्रत आपके माता-पिता के प्रति आदर और सम्मान का संकेत भी होता है।

१२.२ कथा के संकेतों का महत्व

जीवित्या व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha, व्रत की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कथा के संकेत व्रत की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाते हैं और इसका महत्व बताते हैं। कथा के संकेत यह सुनाते हैं कि इस व्रत का पालन करने से माताओं की खुशहाली एवं पोषण की कामना पूरी होती है।

१३. समर्पण और सद्भाव स्वरूपता

१३.१ ओढ़नी और तिलक के प्रतीक

जीवित्या व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है ‘ओढ़नी’ और ‘तिलक’. इसे व्रत करने वाले लोग एक विशेष प्रकार की ओढ़नी पहनते हैं, जिसे “संगत” कहा जाता है. यह संगत समस्त चीजों के ऊपर रखी जाती है और इससे जीवित्या व्रत का आदर्श प्रतीक दर्शाया जाता है. व्रत में तिलक भी बहुत महत्वपूर्ण होता है, जो सद्भाव के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता है. यह व्रत ओढ़नी और तिलक के माध्यम से जीवों को प्रणाम करने और समर्पित होने का संकेत देता है.

१३.२ महामृत्युंजय मंत्र और पुण्य कर्म

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने का महत्वपूर्ण स्थान होता है. यह मंत्र जीवित्या के दौरान प्रारंभिक संध्याकाल में एकाएक ज्ञात होता है. इस मंत्र का जाप जीवित्या व्रत के दौरान अपने शुभ कर्मों में आत्मा की समर्पण को दर्शाता है. व्रत में पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व होता है, जिससे सत्कर्म के फल का प्राप्ति होती है और जीवित्या के सुप्रीम पुरुष का आशीर्वाद मिलता है.

Maha mrityunjay mantra - Jitiya vrat
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

१४. जीवित्या में किए जाने वाले व्रत के रहस्य

१४.१ कर्मकांड और व्रत की महिमा

जीवित्या व्रत का पूरा मन्त्र गुप्त है। यह व्रत विभिन्न कर्मकांडों के माध्यम से आत्मा को पवित्र और संतुष्ट बनाने का अद्वितीय तरीका है। जब हम इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करते हैं, तो हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति के रहस्य का विज्ञान प्राप्त करते हैं।

१४.२ पूजन से पाये जाने वाले फलों का रहस्य

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के पूजन से हम विभिन्न फलों की प्राप्ति करते हैं, जिनका रहस्य अद्भुत होता है। यह व्रत हमें आर्थिक, आध्यात्मिक और भौतिक रूप से सुखी और समृद्ध बनाता है। इसके अलावा, बुराइयों से मुक्ति, स्वास्थ्य और शुभ दृष्टि का फल भी प्राप्त होता है। इन फलों का महत्वपूर्ण रहस्य होता है कि यह हमारे जीवन को समृद्ध, खुशहाल और परम सुखमय बनाते हैं।

१५. सामरिक और साहित्यिक महत्व

१५.१ जीवित्या व्रत के द्वारा संचारित सामरिक महत्व

जीवित्या व्रत महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सामरिक महत्व रखता है. इसे द्वितीय महिने की अष्टमी को मनाया जाता है, जब देवी जिवा की उपासना की जाती है. व्रत के इस आयोजन में मुख्य रूप से महिलाएं ही शामिल होती हैं और इसके द्वारा समाज में सद्भाव और समानता का संदेश दिया जाता है। यह व्रत महिलाओं के सामरिक जीवन में रचनात्मकता और एकता को प्रोत्साहित करता है.

१५.२ सृजनात्मकता के रूप में साहित्य महत्व

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के लिए साहित्य महत्वपूर्ण होता है। कथा, काव्य, गीत, गद्य आदि के माध्यम से व्रत की महिमा, नीतियों का पालन और आध्यात्मिकता का महत्व सभी को समझाया जाता है। इससे साहित्यिक कार्यक्रम हमारे मन को उत्तेजित करते हैं और हमें व्रत के महत्वपूर्ण संदेश को समझने में मदद करते हैं। साहित्य के माध्यम से हम समाज के साथीदारों में जीवान्त सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में रुचि पैदा करते हैं।

सभ्यता की प्रतिष्ठा का महत्व

सभ्यता का महत्व चाहे जीवन के किसी भी क्षेत्र में हो, यह हमारे समाज की नींव है। सभ्यता हमें संस्कृति, शिष्टाचार, नैतिकता, एतिकता और प्रेम की महत्ता सिखाती है। एक व्यक्ति जो सभ्यता का पालन करता है, वह समाज का आदर्श नागरिक बन जाता है। इसीलिए, सभ्यता का महत्त्व अनिवार्य रूप से बढ़ाता है।

जीवित्या व्रत का सभ्यता में महत्व

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है जो मुख्य रूप से उत्तर भारतीयों के बीहड़ और वन जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। यह व्रत पुरानी मान्यताओं, धार्मिक रीतियों और परंपराओं को मान्यता और महत्ता देता है। इसके द्वारा, लोग अपने जीवन में सभ्यता और समाज की मुलभूत मान्यताओं को जीने का संकल्प लेते हैं। जीवित्या व्रत का पालन करना उनकी सभ्यता में महत्वपूर्ण योगदान करता है और सामाजिक भावनाओं की सुरक्षा करने में मदद करता है।

सभ्यता और सदैव नीति के प्रतीक

सभ्यता का अर्थ होता है कि हम दूसरों के साथ आदर्श और न्यायपूर्ण व्यवहार करें। सफलता के लिए सदैव नीति का अपनाना आवश्यक होता है और सभ्यता इसे प्रोत्साहित करती है। सभ्यता के अलावा, सदैव नीति भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जो हमें सफलता के मार्ग पर चलने में मदद करती है। सदैव नीति का पालन करने से हमें न केवल अपना बलिदान करना पड़ता है, बल्कि हम समाज की ओर से भी आदर मिलता है।

भारती और पुत्रोत्पत्ति की आकांक्षा

भारती के धार्मिक और मनोवैज्ञानिक भावनाएं

भारती, हर घर की आध्यात्मिक माता होती है जिससे माता दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक दृष्टि से भी, जन्म और पुत्रोत्पत्ति का विशेष महत्व है। यह एक मातृत्व की भावना है जो मातृत्व के भगवान की प्रतिष्ठा और महिमा को दर्शाती है। भारती माता की कृपा से ही जन्माष्टमी के दिन जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat आयोजित किया जाता है जिसमें शुभकामनाएं दी जाती हैं और संतान की मांग की जाती है।

पुत्रोत्पत्ति की महत्त्वता और जीवित्या व्रत

पुत्रोत्पत्ति की आकांक्षा हर अभिभावक की प्राथमिकता होती है। यह संतान की स्थापना और घर की सामृद्धि का प्रतीक है। जीवित्या व्रत इस आकांक्षा का एक महत्त्वपूर्ण रूप है जो घर को बहुमूल्य संतान से आभूषित करता है। इस व्रत के माध्यम से, आशा और आकांक्षा के भाव से संतान की मांग की जाती है। इससे न केवल पुराणी मान्यताओं को महत्ता मिलती है, बल्कि वह एक परिवार की संतानों की स्थापना का भाव भी प्रगट करता है।

इस तरह से, जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक महत्वपूर्ण अवसर है जिसमें सभ्यता, सामाजिक भावनाएं, और पुत्रोत्पत्ति की आकांक्षा को अद्यतन और मान्यता दी जाती है। यह व्रत हमें एकजुट होने का मौका देता है और हमारे समाज में सभ्यता और नैतिकता को बढ़ावा देता है। इसीलिए, हर व्यक्ति को इस व्रत को अपनाना चाहिए और इसकी महत्त्वपूर्ण लेखन धारा को आगे बढ़ाना चाहिए।

१८. जीवित्या व्रत के निदान

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat का अहम् प्रमुखत्व और महत्त्व है। इस व्रत का पालन विशेषकर भारत में हिंदू समुदाय में आदिवासी लोगों द्वारा किया जाता है। यह व्रत एक प्रकार की प्राण शक्ति का उपासना का रूप है और जीवित्या माता की पवित्र कथा के आधार पर आयोजित किया जाता है। इस लेख में हम जीवित्या व्रत के निवेदन के तत्वों के बारे में विस्तार से विचार करेंगे।

१८.१ अग्नजित द्वारा व्रत नमिता

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat नमिता एक प्रमुख धार्मिक व्यक्ति थीं जिन्होंने इस व्रत का आयोजन करने की पहल की। उन्होंने यह व्रत करके अग्नि देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया था। अग्नजित ने माता जीवित्या की कथा | Jitiya Vrat Katha से प्रेरित होकर इस व्रत को एक पावन परंपरा का हिस्सा बनाया और यह संस्कृति उनके माध्यम से प्रसारित हुई।

१८.२ व्रत का विधिवत समापन

जीवित्या व्रत का विधिवत समापन भी ध्यानजीविता नामक एक आपात स्वर्णिम फूल के अर्पण द्वारा किया जाता है। यह फूल व्रती द्वारा पूजा के अनुसार वनस्पति देवता को समर्पित किया जाता है और उसे व्रती व्यक्ति के सच्चे भावों का प्रतीक माना जाता है। इस समापन रीति से व्रत की सफलता और पूजारी के ध्यान के द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।

१९. प्रमुख सूर्य मंदिरों में जीवित्या व्रत

सूर्य मंदिरों में जीवित्या व्रत करना एक प्रसिद्ध परंपरा है। इन मंदिरों में जीवित्या का आयोजन एक विशेष पूजा और उपासना के रूप में किया जाता है। इस खंड में हम कुछ प्रमुख सूर्य मंदिरों के बारे में जानेंगे जहां जीवित्या व्रत की प्रक्रिया होती है।

१९.१ कोनार्क सूर्य मंदिर में व्रत का आयोजन

कोनार्क सूर्य मंदिर ओडिशा प्रान्त में स्थित है और यह भगवान सूर्य की उपासना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहां जीवित्या व्रत का आयोजन शानदार रूप से होता है और व्रती लोग सूर्य देवता की पूजा और उपासना के लिए इस मंदिर में मिलते हैं। यह एक धार्मिक और आध्यात्मिक स्थान है जहां लोग मांगलिक सुखों की कामना करके अपने जीवन की प्रार्थनाएँ करते हैं।

Jitiya Vrat in Konark Sun Temple

१९.२ गया के विश्वनाथ मंदिर में जीवित्या व्रत

गया के विश्वनाथ मंदिर बिहार में स्थित है और यह हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। यहां जीवित्या व्रत भी विशेष उत्सव के रूप में मनाया जाता है। व्रती लोग इस मंदिर में आते हैं और माता जीवित्या की पूजा करते हैं। यह एक प्रमुख स्थान है जहां लोग अपने पुण्य कार्यों को पूरा करते हैं और अपने जीवन को धर्मप्रिय बनाने की कोशिश करते हैं।

इस लेख के माध्यम से हमने जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat की निदान, अग्नजित द्वारा व्रत नमिता, व्रत का विधिवत समापन, प्रमुख सूर्य मंदिरों में जीवित्या व्रत और व्रत का आयोजन करने वाले कोनार्क सूर्य मंदिर और गया के विश्वनाथ ,मंदिर के बारे में विस्तार से चर्चा की है। जीवित्या व्रत एक प्रमुख हिंदू धार्मिक परंपरा है जो हमारे समाज में अद्वितीयता को बढ़ावा देती है। यह व्रत हमें प्राकृतिक संयम सीखने का भी एक अद्वितीय उदाहरण प्रदान करता है।

गया के विश्वनाथ मंदिर में Jitiya Vrat

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat का सार्थकता और प्रभाव

  • जीवित्या व्रत उत्कृष्टता के साथ एक प्राचीन और पवित्र धार्मिक परंपरा है।
    • इस व्रत को गर्भवती महिलाएं अक्टूबर-नवम्बर माह में अवश्य करती हैं।
  • जीवित्या व्रत का प्रारंभ संकष्टी चतुर्थी के दिन होता है और यह चार दिन तक जारी रहता है।
  • इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पति और परिवार के सुख-शांति और लंबी उम्र की कामना करती हैं.
  • जीवित्या व्रत प्रदेश के आधार पर वताइया, जिवाउ, कूचकुंड, जीविपती और जीविपंचमी भी कहलाता है।

कथा का संक्षेपिक विवरण

  • जीवित्या व्रत की कथा | Jitiya Vrat Katha गौतम ऋषि और अहल्या महर्षि के बारे में है।
  • एक समय की बात है, जब गौतम ऋषि और अहल्या महर्षि संगत करते थे।
  • एक दिन, अहल्या ने अर्थात गौतम ऋषि को ध्यान में भांग डाली। यह घटना सभी द्वारा जानी जाती थी।
  • इस वजह से गौतम ऋषि ने ध्यान में भांग डालने वाले किसी शख्स की मृत्यु की दंड घोषणा की।
  • अहल्या को यह सुनकर बहुत पछतावा हुआ और वह गौतम ऋषि से माफी मांगने निकल पड़ी।
  • परंतु गौतम ऋषि इतनी छोटी माफी से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अहल्या को शाप दे दिया कि वह पत्नी बनकर केवल बीस ताइयाँ रखे रहेगी।
  • ह्रदय विचलित हुई अहल्या ने शाप ग्रहण कर लिया और उसने अपने उपवास की शक्ति से समस्त संपदा को बहाल किया और अपने पति के साथ भगवान की कृपा प्राप्त की।
  • यह बात व्यापारिककर्ता इंद्रधनुष ने सुनी। उन्हें अहल्या के बारे में पता चलता है और उन्होंने उसे अपने यहां आमंत्रित किया और उसे जीवित्या व्रत मनाने की सलाह दी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

१. जीवित्या व्रत क्या है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक प्रमुख हिन्दू द्वादशी व्रत है जो भारतीय सामाजिक संस्कृति में महिलाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है।

२. जीवित्या व्रत को किस दिन मनाया जाता है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat को शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि में मनाया जाता है, जो किसी मास के अंतिम दिन होती है। यह तिथि हर साल बदलती है और पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाती है।

३. व्रत में क्या खाने-पीने की संबंधित मान्यताएं हैं?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के दौरान व्रत करने वाली महिला को आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। भोजन में चावल, मूंग दाल, गेहूं की रोटी, मुगी और मेवे समेत व्रत संबंधित आहार सुरक्षित होते हैं। उन्हें मांस, मछली, अंडे, प्याज़, लहसुन और हरी सब्जियों से बचना चाहिए।

४. जीवित्या व्रत का महत्व क्या है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat का महत्वाकांक्षी माता जी के प्रति स्नेह और श्रद्धा को प्रतिष्ठित करने में समाया गया है। इस व्रत को मान्यता के साथ निभाने से मात्रा में नहीं, वरन श्रद्धा के साथ जीवित रहने की कला सीखी जाती है। यह व्रत सुख समृद्धि और पुत्र सुख के लिए मातृभूमि की कृपा को प्राप्त करने में मददगार सिद्ध होता है।

५. क्या व्रत के पूरा होने के बाद कोई विशेष रीति-रिवाज़ है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat के पूरा होने के बाद व्रत करने वाली महिला को एक पंडित द्वारा आशीर्वाद दिया जाता है। वह देवी माता की पूजा करती है और अन्न और वस्त्र भी दान करती है। इसके बाद उसे कदाचित् एक वृहद्रेष्ठ आत्मिक अनुभव का अनुभव होता है जो उसे अद्वैत ब्रह्म के प्रति अधिक अंतर्मुख होने का संकेत देता है।

६. जीवित्या व्रत को किसलिए और किस समय करने की आवश्यकता होती है?

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat को करने से माता जी की कृपा प्राप्त होती है और पुत्रसंतान की कामना पूरी होती है। यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारतीय प्रांत में मान्यता प्राप्त होता है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और पश्चिम बंगाल में। लोग इस व्रत को मनाकर खुशहाल जीवन और पुण्य प्राप्त करने की कामना करते हैं।

संक्षिप्त में

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक महानतम धार्मिक परंपरा है जो परिवारों को पवित्रता, प्रेम, और सद्भाव के माध्यम से जोड़ती है। यह व्रत समाज में सद्भाव, एकता, और प्रेम के गुणों का संचार करने का एक अद्वितीय तरीका है। जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat का पालन करने से हम स्वयं को धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के साथ, शांति और सुख की ऊर्जा के साथ महसूस करते हैं। इसलिए, हर किसी को इस अमोघ व्रत को अपनी जीवनशैली में शामिल करने की सलाह दी जाती है।

जीवित्या व्रत | Jitiya Vrat एक प्रसिद्ध और महान व्रत है जो मातृपक्ष में मनाया जाता है। इस व्रत का पालन करने से एक माताओं की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना होती है। इसके नियम और विधियों का पालन करना, दान करना, और कथा के संकेतों का महत्व समझना इस व्रत का महत्वपूर्ण अंग है। इसे ध्यान में रखकर विधिवत पूजन करने से हम अपने मातृपक्ष में सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

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